श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का पवित्र हुकमनामा (पृष्ठ :- 571)
युगों युग अटल श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का पवित्र मुखवाक पृष्ठ 571 से
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वडहंसु महला ३ ॥
ए मन मेरिआ आवा गउणु संसारु है अंति सचि निबेड़ा राम ॥ आपे सचा बखसि लए फिरि होइ न फेरा राम ॥ फिरि होइ न फेरा अंति सचि निबेड़ा गुरमुखि मिलै वडिआई ॥ साचै रंगि राते सहजे माते सहजे रहे समाई ॥ सचा मनि भाइआ सचु वसाइआ सबदि रते अंति निबेरा ॥ नानक नामि रते से सचि समाणे बहुरि न भवजलि फेरा ॥१॥ माइआ मोहु सभु बरलु है दूजै भाइ खुआई राम ॥ माता पिता सभु हेतु है हेते पलचाई राम ॥ हेते पलचाई पुरबि कमाई मेटि न सकै कोई ॥ जिनि स्रिसटि साजी सो करि वेखै तिसु जेवडु अवरु न कोई ॥ मनमुखि अंधा तपि तपि खपै बिनु सबदै सांति न आई ॥ नानक बिनु नावै सभु कोई भुला माइआ मोहि खुआई ॥२॥ एहु जगु जलता देखि कै भजि पए हरि सरणाई राम ॥ अरदासि करी गुर पूरे आगै रखि लेवहु देहु वडाई राम ॥ रखि लेवहु सरणाई हरि नामु वडाई तुधु जेवडु अवरु न दाता ॥ सेवा लागे से वडभागे जुगि जुगि एको जाता ॥ जतु सतु संजमु करम कमावै बिनु गुर गति नही पाई ॥ नानक तिस नो सबदु बुझाए जो जाइ पवै हरि सरणाई ॥३॥ जो हरि मति देइ सा ऊपजै होर मति न काई राम ॥ अंतरि बाहरि एकु तू आपे देहि बुझाई राम ॥ आपे देहि बुझाई अवर न भाई गुरमुखि हरि रसु चाखिआ ॥ दरि साचै सदा है साचा साचै सबदि सुभाखिआ ॥ घर महि निज घरु पाइआ सतिगुरु देइ वडाई ॥ नानक जो नामि रते सेई महलु पाइनि मति परवाणु सचु साई ॥४॥६॥
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अर्थ:-
हे मेरे मन ! जगत का मोह जीव के भीतर जन्म मरण के चक्कर लाता है, आखिर सदा कायम रहने वाले #परमात्मा में जुड़ने से जन्म-मरण के चक्कर का अंत हो
जाता है। जिस मनुष्य को सदा स्थिर रहने वाला #प्रभू खुद ही बख्शता है उसको जगत में बार बार फेरा नहीं डालना पड़ता। उसको बार बार जन्म-मरण के चक्कर नहीं मिलते, सदा स्थिर #हरी-नाम में रंगे जाते हैं, वे आत्मिक अडोलता में मस्त रहते हैं, और आत्मिक अडोलता के द्वारा ही #परमात्मा में लीन हो जाते हैं। #हे_मेरे_मन ! जिन मनुष्यों को सदा स्थिर रहने वाला #प्रभू प्यारा लगने लग जाता है, जो मनुष्य सदा स्थिर #प्रभू को अपने मन में बसा लेते हैं, जो मनुष्य #गुरू के शबद में रंगे जाते हैं, उनके जनम-मरण का आखिर खात्मा हो जाता है। #हे_नानक ! #प्रभू के नाम-रंग में रंगे हुए मनुष्य सदा-स्थिर #प्रभू में लीन हो जाते हैं, उनको संसार-समुंद्र में बार-बार फेरा नहीं डालना पड़ता।१।
माया का मोह पूरी तरह पागलपन है जो दुनिया को चिपका हुआ है, दुनिया इस माया के मोह में सही रास्ते से टूटती जा रही है। ये मेरी माँ है, ये मेरा पिता है, ये मेरी स्त्री है, ये मेरा पुत्र है’ ये भी सिर्फ मोह है, इस मोह में ही दुनिया उलझी पड़ी है। पूर्ब जन्म में किए कर्मों के अनुसार दुनिया संन्धियों के मोह में फँसी रहती है, अपनी किसी समझदारी-चतुराई से पूबर्लि कर्मों के संस्कारों को कोई मनुष्य मिटा नहीं सकता। जिस #करतार ने ये सृष्टि पैदा की है, वह यह माया का मोह रच के तमाशा देख रहा है कोई उसके रास्ते पर रुकावट नहीं खड़ी कर सकता, क्योंकि उसके बराबर का कोई और नहीं। अपने मन के पीछे चलने वाला मनुष्य माया के मोह में अंधा हो के मोह में जल-जल के दुखी होता है, #गुरू के शबद के बिना उसको शांति नहीं मिल सकती। #हे_नानक ! #परमात्मा के नाम के बिना सभी जीव गलत रास्ते पर पडे हुये है, माया के मोह के कारण सही जीवन राह से टूटा हुआ है।२।
#हे_भाई ! इस संसार को विकारों में जलता देख के जो मनुष्य दौड़ के #परमात्मा की शरण जा पड़ते हैं वे जलने से बच जाते हैं । मैं भी पूरे #गुरू के आगे प्राथनाएं करता हूँ- मुझे विकारों में जलने से बचा ले, मुझे ये बड़प्पन बख्श। मुझे अपनी शरण में रख #परमात्मा का नाम जपने की वडिआई बख्श। ये दाति बख्शने की समर्था रखने वाला तेरे जितना और कोई नहीं। #हे_भाई ! जो मनुष्य #परमात्मा की सेवा भक्ति में लगते हैं, वे बहुत भाग्यशाली हैं, वह उस #परमात्मा के साथ गहरी सांझ डाल लेते हैं जो हर एक युग में एक स्वयं ही स्वयं है। #हे_भाई ! जो कोई मनुष्य जत सत सनजम आदि कर्म करता है उसका ये उद्यम व्यर्थ जाता है, #गुरू की शरण पड़े बिना ऊँची आत्मिक अवस्था प्राप्त नहीं हो सकती। #हे_नानक ! जो मनुष्य #परमात्मा की शरण जा पड़ता है, #परमात्मा उसको #गुरू का शबद समझने की दाति बख्शता है।३।
#हे_भाई ! #परमात्मा जो बुद्धि मनुष्य को देता है उसके अंदर वही मति प्रकट होती है। #प्रभू की दी हुई मति के बिना और कोई मति मनुष्य ग्रहण नहीं कर सकता। #हे_प्रभू ! हर एक जीव के अंदर और बाहर सिर्फ तू ही तू बसता है, तू खुद ही जीव को समझ बख्शता है। #हे_प्रभू ! तू खुद ही जीव को अक्ल देता है तेरी दी हुई अक्ल के बिना कोई और अकल जीव को पसंद ही नहीं आ सकती। तभी तो, #हे_भाई ! #गुरू की शरण पड़ने वाला मनुष्य #परमात्मा के नाम का स्वाद चखता है। #गुरू के शबद के माध्यम से जो मनुष्य सदा स्थिर #प्रभू की सिफत सालाह करता है, वह सदा-स्थिर #प्रभू के दर पर सदा अडोल-चिक्त टिका रहता है। #हे_भाई ! जिस मनुष्य को #सतिगुरू वडिआई देता है वह अपने हृदय में ही #प्रभू की हजूरी हासिल कर लेता है। #हे_नानक ! जो मनुष्य #परमात्मा के नाम-रंग में रंगे जाते हैं, वह ही #परमात्मा की हजूरी प्राप्त करते हैं, सदा स्थिर #प्रभू उनकी वह नाम सिमरने वाली बुद्धि परवान करता है।४।६।
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वाहेगुरु जी का ख़ालसा ।
वाहेगुरु जी की फ़तेह ।।
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