युगों युग अटल श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का हुकमनामा ( अंग - 711 )

युगों युग अटल श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का हुकमनामा ( पृष्ठ ७११ )

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ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥
रागु टोडी महला ४ घरु १ ॥

हरि बिनु रहि न सकै मनु मेरा ॥ मेरे प्रीतम प्रान हरि प्रभु गुरु मेले बहुरि न भवजलि फेरा ॥१॥ रहाउ ॥ मेरै हीअरै लोच लगी प्रभ केरी हरि नैनहु हरि प्रभ हेरा ॥ सतिगुरि दइआलि हरि नामु द्रिड़ाइआ हरि पाधरु हरि प्रभ केरा ॥१॥ हरि रंगी हरि नामु प्रभ पाइआ हरि गोविंद हरि प्रभ केरा ॥ हरि हिरदै मनि तनि मीठा लागा मुखि मसतकि भागु चंगेरा ॥२॥ लोभ विकार जिना मनु लागा हरि विसरिआ पुरखु चंगेरा ॥ ओइ मनमुख मूड़ अगिआनी कहीअहि तिन मसतकि भागु मंदेरा ॥३॥ बिबेक बुधि सतिगुर ते पाई गुर गिआनु गुरू प्रभ केरा ॥ जन नानक नामु गुरू ते पाइआ धुरि मसतकि भागु लिखेरा ॥४॥१॥
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अर्थ :-
#हे_भाई ! मेरा मन #परमात्मा की याद के बिना रह नहीं सकता। #गुरु जिस मनुख को जीवन का प्यारा #भगवान मिला देता है, उस को संसार-सागर में फिर नहीं आना पड़ता।੧।रहाउ।
#हे_भाई ! मेरे हृदय में #भगवान के मिलाप की चाह लगी हुई थी मेरा मन करता था कि मैं अपनी आँखों के साथ #हरि_भगवान को देख लूं । दयाल #गुरु ने #परमात्मा का नाम मेरे हृदय में पक्का कर दिया-यही है #हरि_भगवान को मिलने का सही मार्ग।੧।
#हे_भाई ! अनेकों शक्तियों के #स्वामी_हरि_भगवान_गोबिंद का नाम जिस मनुख ने प्राप्त कर लिया, उस के मन में, उस के शरीर में, #परमात्मा प्यारा लगने लग जाता है, उस के माथे पर मुख पर उत्म भाग्य जाग जाता है।२।
पर, #हे_भाई ! जिन मनुष्यों का मन लोभ आदि विकारों में मस्त रहता है, उनको #परम_अकालपुरख भुला रहता है। अपने मन के पिछे चलने वाले वह मनुख मूर्ख कहे जाते हैं, आत्मिक जीवन की तरफ से बे-समझ कहे जाते हैं। उन के माथे पर मंदी किस्मत उभरी हुई समझ लो।३।
#हे_दास_नानक ! जिन मनुष्यों के माथे पर धुरों लिखा उत्म भाग्य उभर पड़ा, उन्हों ने #गुरु से #परमात्मा का नाम प्राप्त कर लिया, उन्हों ने #गुरु से अच्छे बुरे काम की परख करने वाली समझ हासिल कर ली, उन्हों ने #परमात्मा के मिलाप के लिए #गुरु से आत्मिक जीवन की सूझ प्राप्त कर ली।४।१।
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वाहेगुरु जी का ख़ालसा !
वाहेगुरु जी की फ़तेह !!

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