श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का हुकमनामा अंग 670


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युगों युग अटल श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का हुकमनामा (अंग -६७०)
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धनासरी महला ४ ।।
मेरे साहा मै हरि दरसन सुखु होइ ॥ हमरी बेदनि तू जानता साहा अवरु किआ जानै कोइ ॥ रहाउ ॥ साचा साहिबु सचु तू मेरे साहा तेरा कीआ सचु सभु होइ ॥ झूठा किस कउ आखीऐ साहा दूजा नाही कोइ ॥१॥ सभना विचि तू वरतदा साहा सभि तुझहि धिआवहि दिनु राति ॥ सभि तुझ ही थावहु मंगदे मेरे साहा तू सभना करहि इक दाति ॥२॥ सभु को तुझ ही विचि है मेरे साहा तुझ ते बाहरि कोई नाहि ॥ सभि जीअ तेरे तू सभस दा मेरे साहा सभि तुझ ही माहि समाहि ॥३॥ सभना की तू आस है मेरे पिआरे सभि तुझहि धिआवहि मेरे साह ॥ जिउ भावै तिउ रखु तू मेरे पिआरे सचु नानक के पातिसाह ॥४॥७॥१३॥
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अर्थ: 
#हे_मेरे_पातशाह ! कृपा कर मुझे तेरे दर्शन का आनंद प्राप्त हो जाए। #हे_मेरे_पातशाह ! मेरे दिल की पीड़ा को तूँ ही जानता हैं। कोई अन्य क्या जान सकता है ? ॥ रहाउ ॥ 
#हे_मेरे_पातशाह ! तूँ सदा कायम रहने वाला मालिक है, तूँ अटल है। जो कुछ तूँ करता हैं, वह भी उकाई-हीन है उस में कोई भी उणता-कमी नहीं। #हे_पातशाह ! सारे संसार में तेरे बिना अन्य कोई नहीं है इस लिए किसी को झूठा नहीं कहा जा सकता ॥१॥ 
#हे_मेरे_पातशाह ! तूँ सब जीवों में मौजूद हैं, सारे जीव दिन रात तेरा ही ध्यान धरते हैं। #हे_मेरे_पातशाह ! सारे जीव तेरे से ही मांगें मांगते हैं। एक तूँ ही सब जीवों को दातें दे रहा हैं ॥२॥ 
#हे_मेरे_पातशाह ! प्रत्येक जीव तेरे हुक्म में है, कोई जीव तेरे हुक्म से बाहर नहीं हो सकता। #हे_मेरे_पातशाह ! सभी जीव तेरे पैदा किए हुए हैं,और, यह सभी तेरे में ही लीन हो जाते हैं ॥३॥ 
#हे_मेरे_प्यारे_पातशाह ! तूँ सभी जीवों की इच्छाएं पूरी करता हैं सभी जीव तेरा ही ध्यान धरते हैं। #हे_नानक_जी के #पातशाह ! हे मेरे प्यारे ! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे मुझे अपने चरणों में रख। तूँ ही सदा कायम रहने वाला हैं ॥४॥७।।१३॥
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Meaning :- 
O my King, beholding the Blessed Vision of the Lord’s Darshan, I am at peace. You alone know my inner pain, O King; what can anyone else know ? || Pause ||
O True Lord and Master, You are truly my King; whatever You do, all that is True. Who should I call a liar? There is no other than You, O King. ||1|| 
You are pervading and permeating in all; O King, everyone meditates on You, day and night. Everyone begs of You, O my King; You alone give gifts to all.||2|| 
All are under Your Power, O my King; none at all are beyond You. All beings are Yours—You belong to all, O my King. All shall merge and be absorbed in You. || 3 || 
You are the hope of all, O my Beloved; all meditate on You, O my King. As it pleases You, protect and preserve me, O my Beloved; You are the True King of Nanak. || 4 || 7 || 13 ||
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वाहेगुरू जी का खालसा !!
वाहेगुरू जी की फतेह !!
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